परीक्षायें समाप्त हो चुकी थीं, एक हफ्ते पहले ही तृतीय वर्ष का समापन हो चुका था। छात्रावास का आखिरी दिन होने की वजह से चहल पहल भी काफी थी। अधिकांश छात्राओं ने अपना कमरा खाली कर दिया था पर कुछ एक अभी भी रुकी हुई थीं, जो थोड़ी ही देर में अपने अपने गन्तव्य के लिए प्रस्थान करने वाली थीं। माहौल भावुक था, बिछड़ने का गम तो था ही पर साथ ही साथ एक नए सुनहरे भविष्य की खुशियां भी थीं।
इन सब के बीच निहारिका बड़ी विचलित हुई इधर से उधर घूम रही थी, मानो बड़ी बैचनी से किसी को ढूंढ रही हो। भोला कहीं नज़र नहीं आ रहा था, कल के डले हुए बिस्किट पे चींटियों ने अपना हक़ जता दिया था और उसका दूध पीने वाला कटोरा भी कहीं नजर नहीं आ रहा था। आखिर कहाँ गया होगा, आज तीन सालों में ऐसा कभी नहीं हुआ था कि भोला आंखों से ओझल हुआ हो, ये सोचते सोचते वो अतीत के घटनाक्रम को याद करने लगीं।
तीन साल पहले की बात है, निहारिका के छात्रावास में आये हुए कुछ ही हफ्ते बीते थे और एक दिन सुबह पार्क से लौटते वक्त कुत्ते का एक नन्हा सा बच्चा उसके पीछे पीछे हॉस्टल तक आ पहुंचा। निहारिका द्वारा प्रेम पूर्वक दिए गए एक बिस्किट के टुकड़े के बंधन में वो ऐसा बंधा की फिर वहीं का होकर रह गया। अंदर छात्रावास में लाकर रखने की इजाज़त तो थी नहीं, सो सेक्युरिटी वाले नृपेंद्र चाचा ने निहारिका के आग्रह को स्वीकार करते हुए उसके उठने बैठने और सोने की व्यवस्था मेन गेट पे अपने ही केबिन में कर दी।
गहरे काले रंग और माथे पे चाँद जैसे सफेद निशान की वजह से सबने उसका नाम भोला रख दिया। वक़्त बीतने के साथ साथ भोला पूरे कॉलेज में सबका प्रिय हो गया, पर निहारिका के साथ उसका लगाव सबसे अलग और हटकर था। अहले सुबह जब तक वो खुद अपने हाथों से उसे दूध और बिस्किट न दे देती वो किसी और चीज़ पे मुंह तक भी न डालता। थोड़ा बहुत स्वभाव से जिद्दी जरूर था, पर समय और दैनिक दिनचर्या का भी उसे पूरा भान था। अगर कभी निहारिका को वापस आने में देर हो जाये तो खुद उसे ढूंढता हुआ क्लासरूम के दरवाजे तक आ पहुंचता और चुपचाप वहीं बैठा रहता जब तक कि प्रोफेसर क्लास समाप्ति की घोषणा नहीं कर देते थे।
इन सारे पुराने खयालातों में गुम निहारिका के चेहरे पे शिकन की लकीरें उभर आयी, परेशानी ऐसी जान पड़ी मानों कोई अपना गुमशुदा हो गया हो। गुस्सा थोड़ा बहुत उसे खुद पे भी आया, परसों से ही थोड़ा बदला बदला सा लग रहा था भोला, पर उसने ज्यादा तवज्जो नहीं दी थी इस बात को। सुबह से ही सुस्त और शांत था बस जहाँ जहाँ वो जाती चुपचाप वो भी पीछे पीछे हो लेता। उसे अब भान हुआ मानों वो कुछ कहना चाह रहा था, उसकी वो छोटी सी गोल गोल आंखें बहुत उदास थी उस दिन। क्या बात थी? क्या हुआ होगा..? कहीं भोला….!
निहारिका का दिल बैठ गया, और आँखों में पानी उतर आया। नहीं नहीं ऐसा कुछ नहीं हुआ होगा.. पास के मोहल्ले में जरा रम गया होगा अपनी बोरियत मिटाने, उसने अपने मन को झूठी दिलासा देने की भर्शक कोशिश की।
तभी सहपाठी रंजना की आवाज से उसकी तंद्रा भंग हुई जो अपना बैग लेकर जाने के लिए तैयार खड़ी थी, ” निहा फिर चल रहीं हूँ, कब से तुम्हें ही ढूंढ रही थी, तुम्हारा भाई भोला भी नज़र नहीं आ रहा, जाने से पहले तुम दोनों से ही विदा लेनी थी”
“हाँ रंजना दो दिन से नहीं दिख रहा, मैं भी उसे ही ढूंढ रही हूँ, आज मुझे भी जाना है, समझ नहीं आ रहा उसे हमेशा के लिए यहीं अकेला छोड़कर कैसे जाऊँ, बहुत दिनों से यही सोच सोच कर परेशान थी, अब तो पता नहीं कहाँ चला गया” निहारिका ने व्यथित होते हुए जवाब दिया।
दोनों सहेलियों ने गले लग एक दूसरे को भावविह्वल विदाई दी, जाते जाते रंजना कह गयी, “भोला का समाचार कह सुनाना, वरना मुझे भी चिन्ता बनी रहेगी”। उसके जाते ही निहारिका फिर से अपनी छटपटाहट के कैदखाने में कैद हो गयी। तभी उसे नृपेंद्र चाचा आते हुए दिखे, मन में उम्मीद की दबी लौ फिर से जल उठी, शायद उन्हें जरूर कुछ पता होगा। तेज कदमों से चलकर उनके पास पहुँची और एक ही साँस में आतुर हो भोला के बारे में विस्तार से सब कुछ कह सुनाया।
भोला के गुमशुदा हो जाने की खबर से नृपेंद्र चाचा भी थोड़े परेशान से हो उठे और दो दिन पहले के घटनाक्रम को याद करते हुए बोल पड़े “निहारिका बेटे, उस दिन जब शाम के वक़्त मैं घर के लिए निकल रहा था तो भोला मुझे सामने के खेतों से आते हुआ दिखा, पास आया तो देखा उसने मुंह में रुद्राक्ष की एक माला दबा कर रखी थी, वो माला उसने अपने दूध पीने वाले कटोरे में रखा और उल्टे पाँव वापस खेतों की ओर चला गया, मैंने कितनी ही आवाज़ दी पर सिर्फ एक बार पलट कर देखा और जाता रहा। मैंने वो माला सहित उसकी कटोरी यहीं अलमिरे में रख दी थी। ये देखो” इतना कहते ही नृपेंद्र चाचा ने वो कटोरी निकाल के निहारिका के हाथों में दे दी।
रुद्राक्ष की वो माला देख, निहारिका वहीं चक्कर खा फर्श पे बैठ रही। वक़्त के साथ धुंधले पड़ चुके यादों के चित्रफलक पे, पुरानी तस्वीरें खुद बखुद उभरने लगीं। तस्वीरें वो भी ऐसी जो नासूर बन कर हृदय के किसी कोने में छुप कर बैठे हुए थे और मौका मिलते ही आँखों से ऊबकाई बन बाहर आने को बेचैन।
शिवम, बाल्यकाल से ही बुद्धि विवेक से सम्पन्न और पठन पाठन में उतना ही मेधावी । बचपन में ही उसकी योग्यता का संज्ञान लेते हुए प्रधानाध्यापक महोदय ने उसे दो कक्षा की उन्नति दी थी। हर बार कक्षा में प्रथम स्थान मानों उसके लिए पहले से ही आरक्षित हो। पारिवारिक रिश्ते से इतर दोनों सुख दुख में एक दूसरे के पक्के साझेदार थे। खुशियाँ हो दामन में तो वक़्त को भी पंख लग जाते। पर नियति के एक कठोर निर्णय ने इन खुशियों पे ग्रहण लगा दिया।
इस बार कक्षा में निहारिका को प्रथम स्थान मिला था, सभी ने बधाइयां दी पर वो खुश नहीं थी। स्मृति में कैद रह गए थे उसके लिए वो पल जब शिवम के सिराहने बैठ कर उसने कहा था “शिवा तेरे भी अच्छे नंबर आये है” और शिवम ने अपने रूग्ण शरीर की बची हुई सारी शक्ति को समेटकर मुस्कुराने की हर संभव कोशिश की थी। कर्क रोग की वीभत्सता की गवाही जर्जर होता जा रहा उसका शरीर था। पर अभी भी चेहरा सौम्यता और विश्वास से लबरेज, बोल पड़ा “आप देखना बारहवीं में मेरे अंक आपसे ज्यादा होंगे”। उसके इन शब्दों को सुन कर वो नकली हंसी हंस, फिर बाद में फूट फुटकर रोयी थी। कर्क रोग अंतिम चरण में था और अब वापसी की कोई गुंजाइश न थी। शिवम को भी इल्म था अपने सीमित जीवनकाल का, वो तो बस निहारिका और माँ बाबूजी के आँखों से अश्रुओं को बहते हुए नहीं देखना चाहता था।
बारहवीं के रिजल्ट आ गए थे, शिवम का वादा टूट गया था और साथ ही उसके संघर्ष और कष्ट के पूर्ण विराम की घड़ियां भी आ चुकी थीं। अस्पताल के सघन चिकित्सा कक्ष में बीप बीप करती मशीनों के सहारे अपने अंतिम क्षणों को जी रहा था शिवम। मध्यरात्रि के बाद का वो पसरा सन्नाटा जीवन के ही एक दुखद सच को बयां कर रहा था जिसे जानकर भी सब अनजान बने रहने की कोशिश करते हैं। सिराहने के एक तरफ माँ बाबूजी और एक तरफ निहारिका बस इतने में ही सीमित होकर रह गए थे उसके आखिरी क्षण। चीर निंद्रा के आगोश में समा जाने से पहले एक बार उसने आंखें खोली, एक झलक माँ बाबूजी को देखा और फिर निहारिका की और देखते हुए बोल पड़ा,
“माँ बाबूजी को मेरी कमी न महसूस होने देना”
वो फट पड़ी “तू क्यूँ जा रहा है रे शिवा, तेरे ही आराध्य भोलेनाथ से तो दिन रात तुम्हारी सलामती की दुआ मांगती रही मैं और माँ, वो तो बड़े निष्ठुर निकले! तेरे गैरमौजूदगी में क्लास रूम की दीवारें तो अब काटने को दौड़ेंगी। कॉलेज तक तो साथ निभा देता! बोल मेरी इतनी सी ख्वाईश भी पूरी नहीं करेगा!” कहते कहते निहारिका के स्वर रुंध गए और फिर कुछ न बोल सकी, माँ बाबूजी को भी संभालना था, जिम्मेदारी का वादा शिवम ने ले लिया था।
आज तलक शिवम ने उसे निहा ही कह कर पुकारा था, पर जाते जाते बोल गया
“दीदी, वादा रहा आऊंगा आपसे मिलने” और बस इतना कहते ही उसकी पलकें हमेशा के लिए खामोश हो गयी साँसे जरूर कुछ घंटे और चलती रहीं।
अनाथ पैदा हुआ था शिवम इस दुनिया में। पिताजी के दफ्तर के पास की झाड़ियों में फेंका मिला था। वात्सल्य भाव से घर ले आये थे उसे बाबूजी। पर जाते जाते उसने सबको ही अनाथ कर दिया।
पानी के छींटे पड़े तो होश आया, नृपेंद्र चाचा के जान में जान आयी। निहारिका ने एकटक कटोरी को देखा और रुद्राक्ष की माला लेकर अपने गले में डाल ली। भोलेनाथ का परम भक्त था शिवम, रुद्राक्ष की माला हमेशा उसके गले में ही रहा करती थी।
कहते है प्रेम भाव के बंधन में बंधा इंसान जीवन मरण के चक्र में उलझ कर बार बार जन्म लेने को मजबूर होता है। पर यह पुनर्जन्म अलौकिक था, अपने वादे को पूरा करने के लिये शायद वो भोलेनाथ की अनुमति से फिर इस धरती पे आया था, पर इस बार हमेशा के लिए बंधन मुक्त होकर चला गया था शिवम।
निहारिका के चेहरे पे तृप्ति के भाव थे जाते जाते नृपेंद्र चाचा से कह गयी।
“चाचा भोला अब कभी नहीं आएगा वापस”
-समाप्त-
भोला और फिर शिवम पात्र को बहुत ही खूबसूरती से सजाया है।सच कुछ ऐसे प्रमाण होते हैं जिसे देख सारी यादें ताजा हो जाती है।खोया मणि पास में और हम खोजे वन वन।चलचित्र सा चलता आपका कहानी।खूबसूरत।
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Ji shukriya sir 😊😊💐💐
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स्वागत आपका।
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😊😊💐
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This is so beautiful! wouldn’t have mind reading it more. just a que How do you do it ??
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Bus aditi yun hi likhte likhte .. likh deta hoon.😊😊 Thank you for appreciating 😊😊
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Have nominated you for 3 days 3 quotes challenge… Check it out😀
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Hmm… Let me.check…😊😊
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This story brought tears in my eyes. It was painful and beautiful.
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Thank you so much Riya 😊😊 😊😊💐
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🙂
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कहानी दिलचस्प थी और अच्छी लिखी गई है।
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जी तहे दिल से आभार😊😊💐💐
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You do have knack of writing a good plot.
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Thank you so much Moushmi 😊😊💐
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